हमारे देश में बहुत से लोग हैं जो कमयाबी की एक नई मिसाल लिखा रहे हैं। हम आज आपको ऐसे ही कुछ जबाजों की कहानी बताने जा रहे हैं। कुछ आत्मनिर्भर लोगों की कहानी जानने के लिए पढ़िए ये लेख-
पलक कोहली की प्रेणना दायक कहानी
जब बच्चे ने ऐसी उपलब्धियां हासिल की हों कि माता-पिता को उनके नाम से पुकारा जाए, तो मां-बाप के लिए इससे बड़ी खुशी का बात क्या हो सकती है। जालंधर के इस्लामगंज की रहने वाली व पुलिस डीएवी पब्लिक स्कूल की 12वीं की छात्रा पलक कोहली ने आज ऐसा मुकाम हासिल किया है कि उसके माता-पिता के साथ देशवासियों को भी पलक पर गर्व है। पलक की जन्म से ही एक बांह नहीं है, इसके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। हालांकि लोग उन्हें दयाभाव से देखते थे लेकिन उसमें हमेशा से ही कुछ करने का जज़्बा रहा है। उनके इस हुनर को उनके कोच गौरव ने देखा और उसे पैरा बैडमिंटन सिखाया और पलक राष्ट्रीय और अंतरराष्टीय प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेकर तीन स्वर्ण व एक कांस्य पदक हासिल कर चुकी हैं। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कोविड-19 महामारी के कारण लागू यात्रा प्रतिबंध के कारण 18 वर्षीय पलक ‘स्पेनिश पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल’ टूर्नामेंट (11-16 मई) में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकीं थी। इस खेल का वैश्विक संचालन करने वाली संस्था बीडब्ल्यूएफ ने पैरालिंपिक में उनके क्वालीफाई करने की सूचना दी। पलक और पारूल की जोड़ी ने महिला युगल के पैरा-बैडमिंटन के एलएलतीन-एसयूपांच वर्ग में क्वालीफिकेशन हासिल किया। इस वर्ग को पहली बार पैरालंपिक में शामिल किया गया है।
मनवीर सिंह की खास पहल
जब दिल्ली के मनवीर सिंह ने अपने दोस्तों और पड़ोसियों के घर प्लास्टिक मांगने की शुरुआत की, तो लोगों को ये समझ नहीं आया कि मनवीर प्लास्टिक क्यों मांग रहे हैं। मनवीर ने सभी से कहा कि उन्हें प्लास्टिक खूबसूरत कलाकृतियां बनाने के लिये चाहिए। मनवीर को लोगों को समझाने में काफी मुश्किलें आईं लेकिन धीरे-धीरे लोग प्लास्टिक देने लगे। उन्होंने उन प्लास्टिक का काफी बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया। मनवीर के प्लास्टिक से बनाए गए आर्ट इन्शटलैशन्स म्यूज़ियम, आर्ट गैलरीज़, आर्ट फ़ेयर्स और अन्य जगहों पर लगाये जाने लगे। आर्टिस्ट और पेशे से टीचर मनवीर वैसे ही प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं जैसे कोई पेंटर रंग का इस्तेमाल। उनका यह काम पर्यावण के लिए काफी फायेदमंद है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करवाने और प्लास्टिक कचरे को अलग करने को मनदीप ने अपना मिशन बना लिया है। हर आर्टवर्क के साथ मनदीप कोई न कोई मैसेज देते हैं।
सुभाषिनी अय्यर कर रही देश का नाम रोशन
भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि देश में जन्मी सुभाषिनी अय्यर अंतरिक्ष पर अनुसंधान करने वाली अमेरिकी एजेंसी नासा के मून मिशन जैसी एक महत्वपूर्ण परियोजना पर काम कर रही हैं। दरअसल, इस परियोजना में नासा इंसान को चांद पर उतारने और उससे आगे यान भेजने की तैयारी कर रहा है। इसमें सुभाषिनी रॉकेट कोर चरण की देखरेख कर रही हैं। कोयंबटूर में जन्मी सुभाषिनी अय्यर पिछले दो सालों से स्पेस लॉन्च सिस्टम से जुड़ी हुई हैं। सुभाषिनी साल 1992 में अपने कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने वाली पहली महिला थीं। सुभाषिनी अय्यर ने बताया कि, ‘चंद्रमा पर आखिरी बार कदम रखे हुए लगभग 50 साल हो चुके हैं, हम इंसानों को वापस चंद्रमा और उससे आगे मंगल पर ले जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।’ हम सभी भारतीय को उन पर गर्व है।🙏
पर्यावरण बचाने के लिए असम की रूपज्योति की पहल
पर्यावरण बचाने के लिए असम की रूपज्योति से किया बीते 17 साल से प्लास्टिक कचरे को उपयोग सामान में बदल कर पर्यावरण बचाने की मुहिम में जुटी हैं। 47 साल की रूपज्योति सेकिया असम में प्रसिद्ध काजीरंगा नेशनल पार्क के पास के क्षेत्र में रहती हैं। रूपज्योति ने 2004 में प्लास्टिक के कचरे से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करने का फैसला किया। उन्होंने आसपास के क्षेत्रों से प्लास्टिक कचरा इकट्ठा कराया और फिर इससे रोजमर्रा की जरूरत का उपयोगी सामान बनवाना शुरू किया। जैसे कि हैंडबैग्स, टेबल मैट्स, डोरमैट्स, डेकोरेशन आइटम्स आदि।
रूपज्योति ने 17 साल पहले पर्यावरण बचाने के लिए मुहिम शुरू करने के लिए जो छोटा सा ‘पौधा’ लगाया था, आज वो ‘वटवृक्ष’ बन चुका है। हालांंकि उनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं है, लेकिन आज वो इस काम में 2300 से ज़्यादा लोगों को ट्रेंड कर चुकी हैं। इनमें असम और अन्य राज्यों के स्टूडेंट्स-महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने इस मुहिम में अपने आसपास की ग्रामीण महिलाओं को मिलाया और उन्हें प्लास्टिक का सही इस्तेमाल करना सिखाया। आज उनकी मुहिम देश से आगे विदेशों में भी जानी जाने लगी है। रूपज्योति की इस सोच और हुनर को हमारा सलाम🙏
5 महिलाओं ने समाज को आत्मनिर्भर बनने की एक मिसाल पेश की
मिलिए तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से लगभग 275 किलोमीटर दूर, नागापट्टिनम जिले के एक छोटे से मछली पकड़ने वाले गांव पूम्पुहार की 5 महिलाओं से, जिन्होंने समाज को आत्मनिर्भर बनने की एक मिसाल पेश की है। पांच साल पहले जब उनके पति कर्ज़ में डूबे थे, उनके पास बच्चों की फीस देने के भी पैसे नहीं होते थे। तब ग्रेसी, सिल्वारानी, राजकुमारी, उमा और पुष्पवल्ली ने मिलकर 2016 में डॉल्फिन नाम का एक छोटा सा समुद्र के तट पर रेस्तरां शुरू किया। इस रेस्टोरेंट में वे केले के पत्तों पर ताज़ा और स्थानीय व्यंजन परोसती हैं। लगातार कड़ी मेहनत का नतीजा यह निकला कि अब वह पांचों न सिर्फ अपने बच्चों को पढ़ा रही है, बल्कि उन्होंने घर के हालात भी बेहतर कर दिए है। वे अपने इस काम को आगे बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रही है और उनका लक्ष्य है कि वह जल्द ही आस-पास के शहरों में एक दिन में 200 ऑर्डर तक पहुंचाएं। पांचों महिलाओं ने जो आत्मनिर्भरता की मशाल जलाई है, वह अब आसपास के गांव में भी पहुंचने लगी है। उनकी इस मेहनत को देखकर आसपास के गांव की कई महिलाएं भी प्रेरित हुई है और वह भी आत्मनिर्भर बन रही है। पांचों महिलाओं की यह कोशिश काफी सरहानीय है।
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