हमारे समाज में आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा कर रहे हैं। पढ़िए ऐसे ही प्रेरणादायक लोगों की कहानी-
तमिलनाडु के 51 साल के ब्रेन डेड हो चुके व्यक्ति ने दिया 8 लोगों को जीवनदान
जीवन के अंतिम पलों में भी मस्तिष्क से मृत 51 वर्षीय आर चेंथामराई ने अपने जीवन को सार्थक बना दिया और वह आठ लोगों को नई ज़िंदगी दे गए। तमिलनाडु के कोयम्बटूर में चेंथामराई के अंगों को एक निजी अस्पताल में आठ लोगों में प्रतिरोपित किया गया। पेशे से दर्जी एवं शहर के सिंगानल्लूर के निवासी आर चेंथामराई 6 जून को एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे और 8 जून को यहां के एमसीएच में उन्हें मस्तिष्क से मृत घोषित कर दिया गया था। मृतक के परिवार ने आगे बढ़कर उनके अंगों को दान करने का फैसला किया। जिगर और एक गुर्दा केएमसीएच में एक मरीज में प्रतिरोपित किया गया जबकि दूसरा गुर्दा वेल्लोर में एक निजी अस्पताल को तथा दिल चेन्नई के एक निजी अस्पताल को भेजा गया। मृतक चेंथामराई की आंखें, त्वचा और हड्डियों को यहां के एक निजी अस्पताल को भेजा दिया गया है।
महाराष्ट्र में टीचर रोहिणी ने प्रवासी मज़दूरों के बच्चों को पढ़ाने का उठाया जिम्मा
जिला परिषद (जेडपी) स्कूल की शिक्षिका रोहिणी लोखंडे ने ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाने की एक खास पहल शुरू की है। 46 साल की रोहिणी लोखंडे उन गरीब बच्चों को पढ़ाती है, जो दिन में काम करते हैं और इनके माता-पिता के पास बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं है। रोहिणी तीन साल से अधिक समय से महाराष्ट्र के नंदोर में जिला परिषद (ZP) स्कूल की शिक्षिका हैं। जब वह स्कूल में पढ़ाने लगी, तो उसने महसूस किया कि पास में गन्ने के खेत थे, जिसमें उन श्रमिकों के लिए अस्थायी घर थे। इन मज़दूरों के बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करते थे। एक शिक्षिका होने के नाते, वह एक बच्चे के ‘स्कूल से बाहर’ होने और पढ़ने में सक्षम न होने की कल्पना नहीं कर सकती थी। उसने अपने जिला परिषद स्कूल के छात्रों की मदद से सर्वेक्षण किया और इन बच्चों को स्कूल में भर्ती कराया। उन्होंने शिक्षा गारंटी कार्ड का उपयोग किया । उन्होंने इन छात्रों को रात की कक्षाएं पढ़ाने के लिए एक स्थानीय वॉलेंटियर से संपर्क किया। लोखंडे ने अस्थायी स्कूल के लिए अपनी जेब से पैसे दिए और यह भी तय किया कि बच्चों के पास किताबें और पढ़ाई के लिए किताबें हो। वह उन्हें बुनियादी व्यक्तिगत स्वच्छता, स्वच्छता और अनुशासन के बारे में भी सिखाती है। इन सबके अलावा बच्चों के लिए मोबाइल फोन चाहिए था, जिसके बाद कोथरुड स्थित एक हाउसिंग सोसाइटी ने पांच फोन दान में दिए। उनका यह काम समाज के लिए प्रेरणादायी है।
मध्य प्रदेश के सोहन लाल पेड़-पौधों से प्यार करने की दे रहे हैं सीख
लोग पेड़-पौधों से अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं और कुछ ऐसा ही कर रहे हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले सोहन लाल द्विवेदी ने। उन्होंने अपनी छत को ही छोटा सा जंगल बना डाला। सोहन लाल ने अपने घर की छत पर कई तरह के पेड़-पौधे लगाए हैं, जिसमें से 40 प्रकार के तो 2500 बोनसाई के पेड़ ही है।दरअसल ये आइडिया उन्हें मुंबई की एक महिला से प्रेरित होने के बाद आया था, जिसने अपने घर में 200 बोनसाई के पेड़ लगाए थे। एसएल द्विवेदी ने कहा कि उन महिला से प्रेरित होने के बाद ही मैंने भी अपने घर में 2500 बोनसाई के पेड़ लगाएं। एसएन द्विवेदी ने अपनी इस बगिया को तैयार करने में अपनी सैलरी का बड़ा हिस्सा इस पर खर्च किया है। फिलहाल वह रिटायर है और अपना ज़्यादातर वक्त इन पौधों के बीच ही बिताते हैं। एसएन द्विवेदी भोपाल में राज्य स्तरीय बोनसाई प्रदर्शनी और दिल्ली में राष्ट्रीय बोनसाई प्रदर्शनी में भी शिरकत कर चुके हैं। यही वजह है कि दिल्ली से लेकर भोपाल तक के बोनसाई प्रेमी उनके पास बोनसाई देखने और लेने आते हैं। इतना ही नहीं वो शहर के कॉलेजों में छात्रों के प्रशिक्षण देने भी जाते हैं।
महिलाओं के साहस को सलाम
देश की दूसरे स्थान की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी के अंतर्गत वन और दुर्लभ वन्य जीवों की निगेहबानी के लिए पहली बार तीन महिलाओं दुर्गा सती, रोशनी नेगी और ममता कंवासी शामिल हुई हैं। नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व में अभी तक यहां पुरुष वन दरोगा की ही तैनाती थी, जो वन क्षेत्र में लंबी दूरी की गश्त करते थे लेकिन अब ये महिलाएं वन दारोगा और कांस्टेबल के तौर पर वन क्षेत्र में लंबी दूरी की गश्त कर रही हैं। वह यहां न सिर्फ ड्यूटी निभा रही हैं, बल्कि ऊंचे ग्लेशियरों को पार कर दुर्लभ वन्य जीवों व जंगल की जानकारी भी जुटा रही हैं।नंदा देवी पर्वत भारत की दूसरी और विश्व की 23वीं सर्वोच्च चोटी है। चमोली जिले में गौरीगंगा और ऋषि गंगा घाटी के बीच स्थित नंदा देवी की ऊंचाई 25 हजार फीट से ज़्यादा है। विषम भौगोलिक परिस्थिति होने के कारण अभी तक नंदा देवी बायोस्फियर क्षेत्र में वन और वन्य जीवों की सुरक्षा में पुरुष वन दरोगा और वन कांस्टेबल ही मुस्तैद रहते थे, लेकिन इस साल यह जिम्मा महिलाओं को सौंपा गया है।ममता ने कहा कि हम दुर्लभ जंतुओं और वनस्पतियों को बचाने के लिए पहाड़ों पर पैट्रोलिंग कर रहे हैं। इतनी ज्यादा ऊंचाई पर भी हमेशा शिकारियों का खतरा रहता है।इन बहादुर महिलाओं के साहस और जज़्बे को दिल से सलाम।
कोलकाता के वैज्ञानिक डॉ. रामेंद्र लाल मुखर्जी ने बनाया पोर्टेबल वेंटिलेटर
‘जहां चाह है वहां राह है’ और इस बात को भारतीय वैज्ञानिक डॉ. रामेंद्र लाल मुखर्जी ने साबित भी कर दिया। कोरोना काल में कोलकाता के वैज्ञानिक डॉ. रामेंद्र लाल मुखर्जी ने ऐसा पॉकेट वेंटिलेटर बनाया है, जो कोरोना के मरीजों को सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं के समय घर बैठे ही मदद करेगा। महज 250 ग्राम के इस पॉकेट वेंटिलेटर को मोबाइल चार्जर की मदद से चार्ज किया जा सकता है और एक बार में 8 घंटे तक काम कर सकता है। मुखर्जी का कहना है कि ये जेब में रखने वाला वेंटिलेटर बनाने का ख्याल उन्हें भी तब आय़ा, जब वह खुद कोरोना के गंभीर संक्रमण से जूझ रहे थे। उन्हें अस्थमा के साथ सांस लेने में भी तकलीफ थी। वैज्ञानिक के साथ इंजीनियर मुखर्जी का कहना है कि कई अमेरिकी कंपनियों ने उनसे इस पॉकेट वेंटिलेटर के उत्पादन और बिक्री के लिए संपर्क साधा है। ये पोर्टेबल वेंटिलेटर लाखों कोरोना मरीजों के लिए उम्मीद की किरण बन सकता है, जो ऑक्सीजन सिलेंडर पाने में नाकम रहते हैं और साथ ही सस्ता होने के कारण गरीब व ज़रूरतमंद लोगों के लिए फायदेमंद होगा।
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