‘प्राणायाम’ सांस लेने की ऐसी तकनीक है, जिसमें सांस को नियमित और नियंत्रित किया जाता है ताकि शरीर और मस्तिष्क में प्राण को सक्रिय किया जा सके। प्राणायाम के ज़रिये व्यक्ति अपने रोगों को दूर करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। व्यक्ति की 72 हजार नसें और नाड़ियों में शुद्ध रक्त का संचार होने लगता है, जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है।
वैसे तो
प्राणायाम अनेक प्रकार के हैं, लेकिन यहां हम उन्हीं प्राणायाम के बारे में बताएंगे, जिन्हें हर उम्र के लोगों को करना
आसान और फायदेमंद होगा। प्राणायाम करने वाले को कुछ सावधानियों के साथ नियमों का
पालन करना भी बहुत ज़रूरी है।
नियम
- प्राणायाम सूर्य उदय से पहले या फिर सूर्यास्त के बाद करना चाहिए।
- प्राणायाम करने से पहले शरीर का स्वच्छ होना जरुरी है।
- खुली और साफ, शांत और हवादार जगह होना चाहिए।
- ऐसी जगह जहां धूल, धुएं और बदबू न हो।
- पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन पर बैठकर प्राणायाम करना चाहिए।
- खाली पेट करना फायदेमंद होता है।
- प्राणायाम करने वाले व्यक्ति को तैलीय और मसालेदार भोजन से दूर रहना चाहिए।
- हल्के और ढीले कपड़े पहनना चाहिए।
- धैर्य और सजगता के साथ नियमित करना चाहिए।
- अपने शरीर की क्षमता के अनुसार करना चाहिए।
प्राणायाम के प्रकार
सूर्य भेदन प्राणायाम
इस प्राणायाम में दाहिने नाक से ही गहरी सांस लेकर बाए नाक से धीरे-धीरे सांस छोड़ा जाता है। दाहिने नाक को सूर्यनाड़ी कहते हैं, जो सूर्य पिंगला नाड़ी का परिचायक है और भेदन का अर्थ ‘निकला’ या जागृत करना। यह कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में मदद करता है।
उज्जयी प्राणायाम
इस प्राणायाम में समुद्र की लहरों के जैसे सांसों से आवाज निकाला जाता है। जब दोनों नासिका से सांस लिया जाता है, तो गले से कंपन करके ध्वनि उत्पन्न की जाती है। यह आवाज़ ही उज्जयी प्राणायाम को एक अहम स्थान देता है।
शीतली प्राणायाम
इस प्राणायाम में जीभ को गोल करके सांसों को अंदर लिया जाता है और नाक से सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ा जाता है। इस प्राणायाम को कूलिंग ब्रीद भी कहा जाता है, क्योंकि ये शरीर में भरपूर ऑक्सीजन का निर्माण करता है। इसके अलावा यह मन की शांति और शारीरिक शीतलता प्रदान करता है। ये गर्मियों के मौसम मैं किया जाने वाला सबसे अच्छा प्राणायाम है।
दीर्घ प्राणायाम
यह एक ऐसा प्राणायाम है जो बैठने की बजाय लेट कर किया जाता है। लेटकर सांसों इतना भरे की पेट फूले, कुछ सेकंड तक इसी मुद्रा में रहना होता है फिर सांस को धीरे-धीरे छोड़ा जाता है। इस क्रिया से थकान नहीं रहती और मानसिक शांति मिलती है।
शीतकारी प्राणायाम
इस प्राणायाम में दोनों जबड़े बंद करके सांस को लेना होता है। इसमें मुंह से ‘सि’ की सिस की आवाज़ निकालते हुए हवा अंदर की ओर खींचना होता है और बाद में सांस को नाक से बाहर छोड़ना होता है। इस आसन को करने से हम हमारे शरीर की गर्मी कम होता है। यह प्रक्रिया शीतली प्राणायाम से मिलता-जुलता है।
सावधानियां
- यह प्राणायाम खाली पेट करनी चाहिए।
- शुरुआत समय में सांस को रोकने से बचना चाहिए।
- प्राणायाम को करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
- जहां तक हो सके इसे बहुत ही शांत भाव में करना चाहिए।
- किसी रोग की स्थिति में तथा गर्भवती महिलाओं को वेगयुक्त प्राणायाम नहीं करने चाहिए।
- दमा, उच्च रक्तचाप तथा दिल से संबंधित रोगियों को नहीं करना चाहिए।
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