जहां चाह है, वहां राह है

जहां चाह है, वहां राह है

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आपने अक्सर सुना होगा कि कोई व्यक्ति मोमबत्ती की रोशनी में पढ़कर इतने ऊंचे पद पर पहुंच गया, या फिर किसी ने मेहनत-मज़दूरी करके खुद अपने स्कूल या कॉलेज की फीस भरी। कौन होते हैं ये लोग? ये वो लोग होते हैं, जिन्होंने छोटी सी उम्र में कई परेशानियां देखी होती हैं, जिन के पास खोने के लिए कुछ नहीं होता और पाने के लिए सारा जहान होता है। कुछ ऐसा ही कारनामा किया है, एक किसान के बेटे अमृत मानेक ने और एविएशन के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए इस साल वह पद्मश्री अवॉर्ड के लिए नोमिनेट भी हुए हैं।

लोगों के चहेते हैं मानेक

अमृत मानेक का मूल स्थान सूरत का एक कस्बा बरदोली है और इस जगह से उनका खास लगाव है। तीन साल पहले मानेक ने बरदोली में एक मंदिर बनवाया था, जिसके ऊपर शिवरात्रि के दिन हेलीकॉप्टर से वह हर साल फूल बरसाते हैं। उन्हें फूल बरसाते हुए देखकर गांव वालों की खुशी का ठिकाना नहीं होता। मानेक अपने गांव वालों के लिए एक मिसाल हैं।

बरदोली से मुंबई तक का सफर

57 वर्षीय अमृत मानेक का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन मानेक का सपना पढ़कर आगे बढ़ने का था। बचपन में वह अपने पिता के साथ मामूली रकम के लिए खेतों में काम करते थे। एक दिन खेतों में काम करते समय उन्होंने एक हवाई जहाज देखा और वही से उन्होंने पायलट बनने का ठान लिया। इसके बाद वह रोज़ाना स्कूल जाने लगे, जो उनके घर से करीब छह किलोमीटर दूर था। मानेक रोज़ पैदल स्कूल जाते और फिर घर आकर दीये की रोशनी में पढ़ाई करते थे। कुछ साल ऐसे बीते फिर वह मुंबई चले गए, जहां उनके पिता एक अंग्रेजी स्कूल में चपरासी की नौकरी कर रहे थे। अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए मानेक ने एक प्लास्टिक रिंग की फैक्ट्री में मज़दूरी की और कुछ समय बाद ‘सिद्धार्थ कॉलेज ऑफ कॉमर्स’ में एडमिशन लिया। यहां मानेक एनसीसी की आर्मर विंग से जुड़े और 1983 में उन्होंने महाराष्ट्र के सबसे अच्छे कैडट के खिताब के साथ गोल्ड मेडल जीता।

इमेजः कैप्टनएडीमानेक

आसमान छूने की चाह अब भी थी बरकरार

मानेक पढ़ लिख तो गए थे लेकिन आसमान में उड़ते जहाज़ अभी भी उन्हें आकर्षित करते थे। संयोग से उन्होंने एक युवा पायलट ‘चार्ल्स लिंडबर्ग’ के बारे में किताब पढ़ी, जिसके बाद उनके पायलट बनने के सपने ने फिर से उड़ान भरी।

मानेक को मिले बेस्ट कैडेट अवॉर्ड के बारे में सुनकर सूरत के एक व्यापारी ने उन्हें 5000 रुपये का इनाम दिया, जिससे उन्होंने वडोडरा के ‘गुजरात फ्लाइंग क्लब’ में दाखिला लिया। कड़ी मेहनत के बाद मानेक ने 1985 में स्टूडेंट पायलट लाइसेंस और उसके बाद प्राइवेट पायलट लाइसेंस हासिल किया।

खुद का एविएशन स्कूल सेटअप किया

सरकारी योजनाओं और बैंक लोन की मदद से मानेक ने साल 1987 में पहले एविएशन स्कूल ‘स्काईलाइन एविएशन क्लब’ की स्थापना की। काफी जद्दोजहद के बाद मानेक साल 1990 में एक पूरी तरह से विकसित फ्लाइंग स्कूल खोला। पिछले 30 सालों में मानेक ने करीब 4,200 पायलट और एविएशन एक्सपर्ट्स को ट्रेनिंग दी है।

मानेक की कहानी उन हज़ारों लाखों लोगों को प्रेरणा देती है कि अगर आप जीवन में कोई मुकाम हासिल करना चाहते हैं, तो उसे पाने की इच्छा को कमज़ोर मत होने दें। कदम बढ़ाते जाएं, आगे का रास्ता खुद नज़र आएगा।

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