धार्मिक सौहार्द की अनूठी मिसाल हैं, मोहम्मद महमूद। इन्हें भगवान का आदमी कहना गलत नहीं होगा। अलग धर्म का होने के बावजूद मोहम्मद बरसों से देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाले कुंभ- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन को रोशन करते आए हैं। इसके अलावा वह अखाड़ा और अन्य धार्मिक जगहों पर भी लाइटिंग का काम करते हैं।
मोहम्मद ने अपनी वेशभूषा में कोई बदलाव नहीं किया है। लंबी दाढ़ी, सफदे पठानी सूट, भूरे रंग का कोट और टोपी में वह सच्चे मुसलमान का धर्म निभा रहें। इसके साथ ही अब तक 11 कुंभ मेला में लाइटिंग का काम कर चुके हैं। मोहमम्द ने साबित कर दिया है कि धर्म अपनी जगह है और काम अपनी जगह।
सब धर्म एक है
मोहम्मद न सिर्फ कुंभ में लाइटिंग का काम करते हैं, बल्कि अखाड़े में साधु-संतों द्वारा दिए गए प्रसाद को भी बड़े प्रेम से ग्रहण करते हैं। लाइटिंग के काम के लिए उनके पास मुस्लिम लड़कों का एक ग्रुप है, जो लंबी बिजली की तारों और लैंप के साथ कुंभ मेला के 45 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में रोशनी बिखेरते हैं।
दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले में मुल्ला जी की बिखेरी रोशनी देखते ही बनती है। मोहम्मद को सभी प्यार से मुल्ला जी के नाम से ही बुलाते है। अपने धर्म को सहेजे हुए, जिस तरह से वह हिंदुओं के महापर्व में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, वह किसी मिसाल से कम नहीं है।
क्यों करते हैं यह काम?
ज़ाहिर है मोहम्मद अपने काम के प्रति प्यार और सम्मान की वजह से ही यह काम करते हैं। मुजफ्फरनगर में उनकी दुकान ‘मुल्ला जी की दुकान’ कुंभ के आयोजको द्वारा बनाई गई है। आज के दौर में जब बल्ब बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां रियायती दरों और छूट के बल पर मुल्ला जी जैसे लोगों का बिज़नेस ठप्प करा सकती है। उस दौर में भी अगर उनकी दुकान चल रही है, तो उसकी वजह है उनका कला व शिल्प और शायद उनका विनम्र स्वभाव लोगों का दिल जीत लेता है।
छोटे शहर के हुनरमंद कलाकार
मुल्ला जी बहुत शिक्षित नहीं है, लेकिन कला और सादगी उनका सबसे बड़ा गुण है। वह बिजली के तार और लैंप से बेहद क्रिएटिव सजावट करते हैं, जो समसामयिक होती है। वह मोंटाज बनाने से लेकर सीन और जटिल डिज़ाइन भी बना लेते हैं। इस काम के लिए उनके पास समर्पित कलाकारों की एक टीम है। मुल्ला जी जैसे लोगों के प्यार और समर्पण को देखकर कहा जा सकता है कि शायद यही कुंभ है, जहां हर चीज़ का संगम होता है।
इमेज: यूट्यूब
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