चाहे दूध हो, लस्सी हो या चाय, उन्हें पीने का असली मज़ा तो कुल्हड़ में ही आता है। कुल्हड़ यानी मिट्टी के बने छोटे-छोटे मग। वो भी एक ज़माना था जब लोग सर्दियों में गर्म-गर्म दूध या चाय की चुस्कियां लेते हुए घंटों तक दोस्तों से बातें किया करते थे। कुछ ऐसा ही नज़ारा गर्मियों की दोपहरी का हुआ करता था, जब लोग ठंडी छाठ या लस्सी का आनंद लिया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे कुल्हड़ की जगह प्लास्टिक और थर्माकोल के बने गिलासों ने ले ली। ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो गए बल्कि सेहत पर भी बुरा असर डालने लगे। क्या आप जानते हैं कुल्हड़ यानी मिट्टी के बर्तनों में खाना-पीना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
दोगुना स्वाद
मिट्टी के बर्तनों का स्वभाव क्षारीय होता है। जिस वजह से शरीर के एसिडिक स्वभाव में कमी आती है। कुल्हड़ में दूध, चाय या लस्सी पीने से स्वाद और पौष्टिकता दोनों बढ़ जाती है।
ताज़गी बनाएं
मिट्टी की तासीर ठंडी होती है इसलिए कुल्हड़ में डाली गई गर्म चीज़ ज़्यादा देर तक गर्म नहीं रहती। इसलिए कुल्हड़ में डाले गए गर्म दूध या चाय तुंरत पीने से दिनभर ताज़गी बनाई रखती है। यह एक एनर्जी की तरह काम करता है।
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हड्डियों की मज़बूती
कुल्हड़ की मिट्टी में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है, जो शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरा कर पाता है। कुल्हड़ में मौजूद सूक्ष्म तत्व होते हैं, वह शरीर के लिए फायदेमंद होते है।
बीमारी से बचाएं
कई जगहों पर स्टील या कांच के बर्तन ठीक से साफ नहीं होते हैं और गंदगी के कारण संक्रमण फैलने का डर होता है, जबकि कुल्हड़ में चाय, कॉफी, या कोई पेय पदार्थ पीने से पेट के संक्रमण होने का रिस्क काफी कम हो जाता है।
प्राकृतिक है
कुल्हड़ पूरी तरह से प्राकृतिक हैं और सदियों से इनका इस्तेमाल हो रहा है। प्लास्टिक या फोम के गिलासों का इस्तेमाल स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी खतरनाक होता है। जबकि कुल्हड़ पूरी तरह से इको फ्रेंडली होते हैं। कुल्हड़ का इस्तेमाल करने के बाद ये तुरंत नष्ट हो जाते हैं और कुछ ही दिनों में मिट्टी में घुल जाते हैं।
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