आज चाहे टीचिंग का प्रोफेशन कुछ लोगों के लिए बिज़नेस बन गया हो, लेकिन बहुत सारे ऐसे टीचर्स है, जो इसे रोज़ी-रोटी का ज़रिया नहीं मानते हैं। उनके लिए पढ़ाना किसी धर्म और ईमान से बढ़कर है। ऐसी ही एक केरल की लेडी टीचर है, जो रोज़ नदी, पहाड़ियों का लंबा घुमावदार रास्ता पार करते हुए स्कूल पहुंचती है और बच्चों को पढ़ाती है।
परेशानियों नहीं घबराती
तिरुवनंतपुरम की रहने वाली केआर उषाकुमारी पिछले 16 वर्षों से केरल के एक दूरदराज के गांव में अगस्त्य ईगा अध्यापका विद्यालय चला रही हैं। उषाकुमारी सुबह सबसे पहले अपने घर अंबुरी से कुंबिक्कल कदावु तक का सफर स्कूटी से तय करती हैं। उसके बाद खुद नाव चलाकर नदी पार करती है और फिर वह पहाड़ों का लगभग दो से तीन किलोमीटर का रास्ता भी पार करते हुए स्कूल पहुंचती है।
स्कूल में हैं अकेली टीचर
उषाकुमारी जिस स्कूल में पढ़ाने जाती हैं, इस स्कूल में पहली कक्षा से लेकर चौथी कक्षा तक की पढ़ाई करवाई जाती है। खास बात यह है कि इस स्कूल में वह अकेली टीचर ही हैं। ऐसे में उन्हें खुद ही पहली से लेकर चौथी कक्षा तक के बच्चों को अकेले पढ़ाना पड़ता है। इसके अलावा वह स्कूल की सभी ज़रूरतों का भी ध्यान रखती है, जिसमें बच्चों के लिए मिड डे मील भी शामिल है।
जागरूकता को समझती है ज़रूरी
सरकार ने आदिवासी इलाके कोटूर में साल 1999 में स्कूल खोला था, जिसे उषाकुमारी अकेले अपने दम पर चला रही है। वह सिर्फ स्कूल में ही नहीं पढ़ाती बल्कि गांव वालों को भी शिक्षा के प्रति जागरूक करती है।
घर पहुंचना हो जाता है मुश्किल
आमतौर पर उषाकुमारी को स्कूल से घर वापस लौटने में रात के आठ बज जाते हैं। अगर मौसम खराब हो जाये, स्कूल से निकलते देर हो जाये या सेहत ठीक न हो, तो वह किसी भी छात्र के घर रूक जाती है। फिर अगले दिन शाम में ही उनके लिए अपने घर वापस आ पाना संभव हो पाता है।
टीचिंग के प्रति ऐसे जनून और इसे अपना धर्म मानने वाली उषाकुमारी जैसी ‘गुरु’ को हमारा सलाम|
इमेज: उमा मोहन / फेसबुक
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