आज कोरोना काल में लोग न सिर्फ नौकरी खोने या काम बंद होने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं बल्कि वह अपनों को भी खो रहे हैं। कोरोना की इस भयावह घड़ी में कुछ बच्चों ने तो अपने माता-पिता तक को खो दिया। लोगों में चिंता इस कदर हावी हो गई है कि सावधानी बरतने के बाद भी कहीं उन्हें कोरोना न हो जाए। जब स्थितियां ऐसी अनिश्चितताओं से भरी हो, तो दुख और चिंता का होना स्वाभाविक है, ऐसे में इन भावनाओं को सही तरीके से हैंडल करना बेहद महत्वपूर्ण है। जो लोग घबराहट, चिंता या दुख के इमोशन्स को समय रहते नहीं समझते, वह डिप्रेशन और दुख के सागर में कहीं गुम हो जाते हैं।
इन भावनाओं से कैसे बाहर निकला जाए, यही समझाने और जागरुक करने के लिए ThinkRight.me ने हाल ही में वेबिनार किया। इसमें साउंड हीलिंग और मेडिटेशन गुरू विदिषा कौशल ने विस्तार से दुख और चिंता से निकलने के 5 तरीके बताए।
1. पहचान करें
अक्सर देखा गया है कि हम इन भावनाओं को समझना नहीं चाहते और हम इनसे भागते हैं। जब हम चिंता या दुख जैसी भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं करते, तो हम इन्हें दूर करने का उपाय नहीं सोच पाते। दरअसल इन भावनाओं से दूर भागने का कारण डर होता है। हम डरते है कि चिंता या दुख के भाव हमारे दुश्मन है, ये हमें पॉज़िटिव नहीं सोचने देंगे। इसका नतीजा यह होता है कि हम इन भावों से कभी बाहर ही निकल नहीं पाते।
विदिषा ने खासतौर पर ज़ोर देते हुए कहा, “हमें इन इमोशन्स को अपना दोस्त समझकर इन्हें अपनाना चाहिए। नज़रअंदाज़ करके इनसे भागना कोई हल नहीं है, लेकिन ये ज़रुर याद रखें कि इन भावनाओं को ज़रूरत से ज़्यादा हावी न होने दें।“
2. सामना करें
अब जब आपने दुख और चिंता को अपना दोस्त बना लिया है, तो इन भावनाओं को अपने भीतर जगह दे। उनकी बात बिना किसी टोकाटाकी के सुने। इसे आपको बिल्कुल वैसे ही करना है जैसे आपका कोई दोस्त आपके घर आता है, आप उसे आराम से सोफे पर बिठाते हैं और उसकी समस्या को बिना किसी टोकाटाकी के सुनते है। विदिषा कहती है कि जब आप अपने दोस्त की बात को सुनते हैं, तो वह अच्छा महसूस करता है और आप दोनों मिलकर कोई न कोई हल भी ढ़ूंढ लेते हो। ठीक वैसे ही जब आप दुख और चिंता जैसे भावों को सुनते है, तो आप भीतर से अच्छा महसूस करते हैं और आपको भी कोई न कोई समाधान मिलता है।
3. बिना किसी आलोचना के समझे
इसे विदिषा ने बच्चे का उदाहरण लेकर बड़ी ही गहराई से समझाया। जब बच्चे को चोट लगती है या वह किसी दोस्त से लड़कर घर आता है, तो आपको अपनी बात बताता है। आप उसकी बात को बड़ी ही शांति के साथ सुनते हैं और फिर रोते बच्चे को प्यार से गोद में बिठाकर सहलाते हैं। बच्चा बात बताते-बताते शांत होने लगता है और थोड़ी देर बाद भूल भी जाता है। अगर आपने बच्चे की बात नहीं सुनी और उसे डांट दिया तो वह गलत व्यवहार करने लगता है या गुस्सा होने लगता है। ठीक उसी तरह अगर अपनी भावनाओं को बड़े ही प्यार से सुनते है, गौर से समझते है तो यह भावनाएं खुद ब खुद शांत होने लगती है। नहीं सुना और समझा तो वह भी आपके मन में घर कर जाती है और आपके व्यवहार में दिखने लगता है।
4. भावनाओं को बह जाने दें
जब आप इन भावनाओं को आप समझ गए तो इन्हें बह जाने दें। कुछ लोग रो देते हैं, तो कुछ लोग लिखकर अपनी भावनाओं को निकालते हैं। अपने अंदर के दर्द को बाहर निकालिए अन्यथा शरीर बीमारियों का घर बन जाएगा। 10 से 15 मिनट मेडिटेशन करना भी दुख और चिंता को बाहर निकालने का अच्छा ज़रिया है। अगर आपको लगता है कि आप दुख और चिंता को इन तरीकों से भी अलग नहीं कर पा रहे हो, तो प्रोफेशनल्स की मदद भी ली जा सकती है।
5. चिंतन करना
दुख या चिंता को कम करने का तरीका है कि आप अपने जीवन में कुछ चीज़ों को कम करिए और कुछ गतिविधियों को बढ़ाइये। कम करने वाली गतिविधियां जैसे कि खबरें या किसी से बहस करना इत्यादि। सोशल मीडिया पर जो आप फॉलो करते हैं, उसे देखिए कि कहीं वह आपके मन पर तो असर नहीं कर रहा। कुछ गतिविधियों को बढ़ाने का मतलब है कि आप खुद की देखभाल करना सीखें जैसे कि यूं ही आसमान या पौधों की खूबसूरती देखिए। अपने विचारों को सहेजकर कहीं लिखिए।
जब आप खुद की देखभाल करते हैं, तो आप अपने आसपास के समाज को देखते हैं, उनके लिए कुछ करने का सोचते हैं। इसलिए खुद को शांत करके जीवन का आभार जताइये। दूसरों के सामने खुद को पीड़ित की तरह नहीं बल्कि बदले हुए सशक्त इंसान की तरह दिखाइये। यकीन मानिए जीवन बहुत खूबसूरत नज़र आएगा।
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