दुनिया बदल रही है तो लोगों की जीवनशैली भी बदल रही है और इस बदलती जीवनशैली में चिंता, तनाव और डिप्रेशन जैसी परिस्थितियां लगातार इंसान का पीछा कर रही है। अधिकतर लोग इन तीनों शब्दों का एक ही अर्थ समझ लेते हैं। हालांकि इन तीनो में बहुत अंतर है। साथ ही इनका जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का स्तर भी अलग है। तो आइए आज जानते हैं चिंता, तनाव और अवसाद क्या है और इनके बीच कितना अंतर है-
चिंता क्या है?
मनोविज्ञान के अनुसार चिंता एक ऐसी भावना है, जो वास्तविक या कथित खतरे के कारण उत्पन्न होती है। इस वजह से मन अशांत हो जाता है और नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने लगती है। अगर चिंता की यह दशा लंबी खिंच जाए तो डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि मनोविज्ञान में चिंताएं सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों तरह की होती है। चिंताओं का मन की शांति, एकाग्रता पर बुरा असर पड़ता है अतः इनसे दूर रहना ही समझदारी है। खैर कुछ लोग चिंताओं से दूर रह लेते हैं लेकिन कुछ इनसे बचने में असमर्थ भी होते हैं और ऐसे लोगों में ही चिंताएं, तनाव और अवसाद का कारण बन जाती हैं।
चिंता से बचने के उपाय– चिंता से बचने के लिए परिवार, दोस्तों के साथ समय बिताएं तथा उनसे मन को परेशान करने वाली बातों को साझा करें।
तनाव (स्ट्रेस) क्या है
चिंतित रहने को अक्सर हम तनावग्रस्त होना मान लेते हैं। लेकिन दोनों की वजहें अलग- अलग हैं। चिंता डर और नकारात्मक चीजों से पैदा होती है लेकिन तनाव के कारण अलग होते हैं। एम्स के मनोविज्ञान विभाग के अनुसार ‘काम का बोझ,चिड़चिड़ापन, घबराहट,मन की कुंठाएं, कमज़ोरी, सुस्ती, आत्मविश्वास की कमी, असहाय महसूस होना, भविष्य अंधकारमय लगना आदि तनाव के कारण हैं’।
तनाव से बचने के उपाय- पर्याप्त नींद लेना,दिनचर्या में सकारात्मक बदलाव, योग, मेडिटेशन आदि का सहारा लेकर तथा असमय फ़ोन का इस्तेमाल, नशीली दवाओं का सेवन, सिगरेट आदि से परहेज करके तनाव से काफी हद तक बचा जा सकता है।
अवसाद (डिप्रेशन)
चिंता और तनाव की तुलना में डिप्रेशन एक भावनात्मक स्थिति है। मनोविज्ञान में इसे सिंड्रोम माना जाता है। डिप्रेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति लंबे समय तक नीरस जीवन जीता है और असहाय महसूस करता है। लगातार असफलता, प्रेम संबंध टूटना, लंबी बीमारी, कुपोषण आदि इसके कारण हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़े के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन की ज्यादा शिकार होती हैं।
अवसाद से बचने के उपाय– मनोचिकित्सकों के अनुसार डिप्रेशन से बचना है तो सबसे पहले यह मानना ज़रूरी है कि अवसाद एक मानसिक बीमारी है। विश्व में मानसिक रोगों से पीड़ित सबसे ज्यादा मरीजों की संख्या भारत में है। अतः इससे बचने के लिए मनोचिकित्सक का सहारा लें तथा पूरा ट्रीटमेंट लें। क्योंकि डिप्रेशनग्रस्त मरीज के इलाज में कम से कम 6 महीने लगते हैं।
अवसाद और तनाव में अंतर–
तनाव के लक्षण प्रायः कुछ समय के लिए होते हैं। इसमें सिर दर्द, नींद न आना, किसी काम में मन न लगना आदि होता है। लेकिन ये लक्षण लंबे समय लगभग 6 हफ्तों तक रहें तो डिप्रेशन का कारण बनते हैं। डिप्रेशन में व्यक्ति के विचार अधिक नकारात्मक हो सकते हैं और वह निराशावादी रवैया अपना लेता है।
इस तरह ये तीनों ही स्थितियां एक स्वस्थ दिमाग के लिए हानिकारक हैं। अगर आपको भी कभी तनाव,अवसाद जैसे लक्षण आते हैं तो ऊपर लिखे उपायों को अपनाएं और मेडिटेशन के ज़रिए पॉज़िटिव जीवन की तरफ बढ़े।
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