हमारे देश में ऐसे बहुत से त्योहार हैं जो कुछ अच्छी सीख देते हैं। जैसे- होली और ईद भाईचारे की सीख, दीवाली और क्रिसमस से अच्छाई का महत्व, रक्षाबंधन से संबंधों की सीख तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी जैसे त्योहार बच्चों से प्यार करने की सीख देते हैं। अगर कुल मिलाकर कहें तो ये सिर्फ त्योहार नही हैं बल्कि भारत की संस्कृति हैं। ये त्योहार ही हमें विविधता से भरे इस देश में जीने का सलीका सिखाते हैं।
आध्यात्मिकता की शिक्षा देता है जन्माष्टमी का त्योहार
श्री कृष्ण ने अपने जीवन में कई भूमिकाएं निभाई। जैसे – बचपन में एक अच्छे पुत्र की भूमिका, किशोर अवस्था में अच्छे मित्र और अच्छे प्रेमी की भूमिका, अगले पड़ाव में अच्छे शिष्य का चरित्र, युवा अवस्था में कंस के आतंक को खत्म कर समाजसेवी का चरित्र , फिर गीता उपदेश देते हुए अच्छे गुरु की भूमिका। कृष्ण ने आम जीवन के लगभग सभी पहलुओं को छुआ है। इसी कारण हम इनके चरित्र से बहुत सारी चीजें सीख सकते हैं।
उनकी खास चीज़े जो देती है शिक्षा
- बांसुरी – कृष्ण जीवन की हर अवस्था में बांसुरी बजाते हैं। यह शांति, निरंतरता और मधुरता का प्रतीक है।
- मोरपंख – श्री कृष्ण इसे सिर पर धारण करते हैं जिसका मतलब है जिम्मेदारियों के साथ खुश रहना।
- गोवर्धन को उंगली से उठाना – यह इस बात का प्रतीक है कि कभी शक्ति का घमंड नहीं करना चाहिए।
- गायों को प्रेम करना- इससे सीख मिलती है कि जो भी चीजें हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को आसान बनाती है, उनका सम्मान करें।
- महाभारत में सारथी – कृष्ण जब अर्जुन के सारथी बने तो दुनिया को संदेश मिला कि किसी भी कीमत पर सत्य के साथ खड़ा होना चाहिए।
- सुदामा के मित्र -सुदामा गरीब ब्राह्मण थे और कृष्ण राजा। फिर भी कृष्ण ने जो मित्रता निभाई वो मिसाल है।
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी का बच्चों के लिए खास महत्व है। कहा जाता है कि ‘बच्चे भगवान का रूप होते हैं’। ये वाक्य आध्यात्मिकता का परिणाम है। हर कोई अपने बच्चे का लालन-पालन कृष्ण की तरह करना चाहता है और हर मां, यशोदा की तरह बनना चाहती है। यहां कृष्ण का बचपन भारतीय संस्कृति में सबसे अच्छे, सबसे सुखद बचपन का पैमाना है। इसका आध्यात्मिक मतलब यह भी है कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों का शुरुआती जीवन कृष्ण के जीवन की तरह समृद्ध हो।
वहीं यशोदा, इस देश में आदर्श संबंधों का उदाहरण है। यशोदा का चरित्र आदर्श मां का है। कृष्ण-यशोदा के चरित्र से सीख मिलती है कि चाहे रिश्ते कैसे भी हों लेकिन सच्चाई और प्रेम पर आधारित होने चाहिए।
इस तरह त्योहार हमें जीने का नज़रिया तो सिखाते ही है, साथ ही यह हमें धार्मिकता से आध्यात्मिकता की ओर लेकर चलते हैं।
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