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क्या आप प्राकृतिक आपदा को केवल एक घटना या समस्या समझते है, तो यह लेख पढ़िये और जानिये कि इससे जीवन की क्या सीख मिलती है।
अगर आपको भी स्वार्थी इंसान बनने की चिंता सता रही है, तो घबराएं नहीं बस यह लेख पढ़िये और इन तरीको अपनाएं-
शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान और शिक्षकों के सम्मान में अपना जन्मदिन शिक्षकों के नाम करने वाले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से जुड़ी घटनाओं से हमें क्या प्रेरणा मिलती है, पढ़िये इस लेख में –
जानिए कैसे स्पेन के रनर इवान फर्नैंडिज़ रेस हारकर भी इंसानियत का पाठ पढ़ा गए। इस दिलचस्प किस्से को पढ़िए इस लेख में –
कोरोना की दूसरी लहर में World For All Animal Adopotions एनजीओ बेज़ुबानों की देखभाल में भी लगातार काम कर रही है। जानिए आप कैसे उनकी मदद कर सकते हैं. जानने के लिए पढ़िए ये लेख-
दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देने वाले विचार को पढ़िये इस लेख में –
खाप पंचायत जाति व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश कर रही है और इसी पहल में अब गांव वाले अनोखा सरनेम इस्तेमाल करेंगे। जानने के लिये पढ़िये यह दिलचस्प लेख-
सड़क के गड्ढ़े भरने के लिये एक बच्चे ने बड़ा साहसी कदम उठाया है। जानिये उसकी प्रेरणात्मक कहानी-
अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर किसी ज़रूरतमंद की मदद करना ही सच्ची मानव सेवा है और हम भारतीय इसमें हमेशा से आगे रहे हैं। मानव सेवा की ऐसी ही एक अनूठी मिसाल पेश की है, जानिये इस लेख में-
बेज़ुबान ने ऐसी मिसाल खड़ी की जिसे देखकर हर कोई हैरान हो जाएगा । जाने क्या है यह मिसाल –
अनुष्का भले ही पांच साल की है, लेकिन खाने के लिये अपनी मम्मी को रोज़ाना परेशान करती है। उसकी एक ही ज़िद्द होती है, पहले मोबाइल दो फिर खाना खाऊंगी। हारकर उसकी मम्मी को मोबाइल देना ही पड़ता है, लेकिन जब उसकी दादी उसे प्यार से समझाती है कि बेटा मोबाइल देखने से आंखें खराब हो जाती है, चलो मैं आपको विंडो पर बिठाकर खिलाती हूं, तो नन्हीं अनुष्का झट से दादी की बात मान लेती है। अनुष्का की तरह ज़्यादातर बच्चे भले ही अपने मम्मी-पापा का कहा न मानें, लेकिन दादा-दादी या नाना- नानी की बात ज़रूर मानते हैं। […]
एक बड़े अखबार में रिपोर्टर होने के नाते खबरों की तलाश में *रेनू को मुबंई के एक कोने से दूसरे कोने में घूमना ही पड़ता है। इसके बाद रिपोर्ट फाइल करके घर के लिए निकलने में अक्सर उसे देर रात हो ही जाती है। हालांकि कई बार उसके साथ ऑफिस के साथी होते है पर कभी कभी रेनू को अकेले भी ट्रैवल करना पड़ता है। हज़ारों मुबंईकरों की तरह मुबंई की ‘लाइफ लाइन’ कही जाने वाली लोकल ट्रेन उसका भी सहारा है। एक दिन देर तक काम करके रेनू ऑफिस से अकेले निकली और रोज़ की तरह अपने घर के […]
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